Tuesday, July 23, 2013



दूर से .....वो चिड़िया मेरी उपस्थिति में मेरे द्वारा फेंके गए दानों को बस देख भर रही है ...वह चाह रही है की मै कुछ सेकेण्ड अपनी नज़र उस पर से हटा दूँ ....पर उसे दाना खाते देखने के लिए ही तो मैंने वे फेंके थे ...तो मै क्यूँ नज़र हटाऊँ? ...मै नहीं हटाऊँगा ...हद होती है ...सृष्टी के निर्माण से हम तुम साथ हैं...बावजूद इसके हमारी आहट भर से तुम असहज हो जाती हो ... क्या मानवता इतनी अविश्वसनीय हो गयी है?...  स्नेह,प्रेम,करुणा ये हममें नहीं रहे ?...संवेदना नहीं रही ? और फिर दाने तो मैंने खुले आसमान के तले अपने लॉन में बिछाए हैं और आस-पास कोई जाल भी नहीं,न ही तुम्हारे और मेरे सिवा कोई तीसरा, और मै तुमसे कुछ फिट की दूरी पर भी हूँ ....इतने पर भी तुम्हारा इस तरह असहज होना मेरी कुछ पल की ख़ुशी को मायूसी में बदल रहा है ...और ये तुम्हारी दूसरी चिड़ियों को अपनी चहचहाहट से सचेत करने की कोशिश मुझे खल रही है ...सभीं तुम्हारे इशारों पर रुकीं है ...  उनका तुम पर ये विश्वास तुम्हारे उनका लीडर होने की पुष्टि करता है ...हाँ,माना कि ऐसे स्वाभाविक गुण मानवजाति में बहोत कम देखे गए हैं ...पर सभी तो एक जैसे नहीं होते ...कम से कम मुझे तो तुम भीड़ में शामिल मत करो ...इतना तो सोचो कि अगर मुझे तुम्हे कुछ नुकसान पहुंचाना होता तो इस तरह तुम्हारे लिए दाने क्यूँ बिखेरता ...बटेर से सीधे तुम पर निशाना साधता ...
                                                                       
                                                                                                                                          जारी है ......

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