ये तो बस एक औपचारिकता भर है
मुझको तेरा पूछना, क्या हाल खबर है
मुझ पर तेरा नजरिया बदला हुआ गर है
मुमकिन है ज़माने की बातों का असर है
फ़िक्र नहीं ये की रिश्तों में ठहर है
वक़्त के साथ बदलने का भी डर है
कल तक रही हमारी एक डगर है
पर अब चलने को अलग राहगुज़र है
गिर गया आदमी तुममें किस कदर है
शर्म कर लो अब तो कुछ,....अगर है
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